TY - BOOK AU - Anuradha Beniwal TI - Log Jo Mujhmein Rah Gaye SN - 9789392757327 U1 - 891.43 An89 L PY - 2022/// CY - Delhi PB - Sarthak N1 - एक लड़की जो अलग-अलग देशों में जाती है और अलग-अलग जींस और जज़्बात के लोगों से मिलती है। कहीं गे, कहीं लेस्बियन, कहीं सिंगल, कहीं तलाक़शुदा, कहीं भरे-पूरे परिवार, कहीं भारत से भी ‘बन्द समाज’ के लोग। कहीं जनसंहार का—रोंगटे खड़े करने और सबक देने वाला—स्मारक भी वह देखती है जिसमें क्रूरता और यातना की छायाओं के पीछे ओझल बेशुमार चेहरे झलकते हैं। उनसे मुख़ातिब होते हुए उसे लगता है, सब अलग हैं लेकिन सब ख़ास हैं। दुनिया इन सबके होने से ही सुन्दर है। क्योंकि सबकी अपनी अलहदा कहानी है। इनमें से किसी के भी नहीं होने से दुनिया से कुछ चला जाएगा। अलग-अलग तरह के लोगों से कटकर रहना हमें बेहतर या श्रेष्ठ मनुष्य नहीं बनाता। उनसे जुड़ना, उनको जोड़ना ही हमें बेहतर मनुष्य बनाता है; हमारी आत्मा के पवित्र और श्रेष्ठ के पास हमें ले जाता है। ऐसे में उस लड़की को लगता है—मेरे भीतर अब सिर्फ़ मैं नहीं हूँ, लोग हैं। लोग—जो मुझमें रह गए! लोग जो मुझमें रह गए—‘आज़ादी मेरा ब्रांड’ कहने और जीने वाली अनुराधा बेनीवाल की दूसरी किताब है। यह कई यात्राओं के बाद की एक वैचारिक और रूहानी यात्रा का आख्यान है जो यात्रा-वृत्तान्त के तयशुदा फ्रेम से बाहर छिटकते शिल्प में तयशुदा परिभाषाओं और मानकों के साँचे तोड़ते जीवन का दर्शन है। ‘यायावरी आवारगी’ श्रृंखला की यह दूसरी किताब अपनी कंडीशनिंग से आज़ादी की एक भरोसेमन्द पुकार है। ER -