21vin Shati Ka Hindi Upanyas
Pushppal Singh
21vin Shati Ka Hindi Upanyas - Delhi Radhakrishna 2015
21वीं शती का हिंदी उपन्यास एक ही अध्येता द्वारा उपन्यास-साहित्य के समग्र का परिक्षण कर विशिष्ट कृति के मूल्यांकन की परंपरा का प्रायः अभाव है | एकाध प्रयत्न को छोड़कर उपन्यास-आलोचना में बड़ा शून्य है | इसी शून्य को भरने का प्रयास सुप्रसिद्ध वरिष्ठ आलोचक डॉ. पुष्पपाल सिंह प्रणीत इस ग्रन्थ में हुआ है जिसमें 21वीं शती के उपन्यास-साहित्य की समग्रता में प्रवेश कर, 2013 (के मध्य तक) के प्रकाशित उपन्यासों पर गंभीरता से विचार का सुचिंतित निष्कर्ष प्रतिपादित किए गये हैं | उपन्यासों के कथ्य की विराट चेतना पर विचार करते हुए दर्शाया गया है कि आज उपन्यास का क्षितिज कितना विस्तृत हो चुका है | भूमंडल की कदाचित कोई ही ऐसी समस्या होगी जिस पर हिंदी उपन्यास में विचार नहीं हुआ हो | भूमंडलीकृत आर्थिकता (इकॉनमी) तथा अमेरिकी संस्कृति के वर्चस्व ने न केवल भारत अपितु पूरी दुनिया में जो खलबली मचा राखी है, उस सबका सशक्त आकलन ‘21वी शती का हिंदी उपन्यास’ प्रस्तुत करता है | उपन्यास का चिंतन और विमर्श पक्ष इतना सशक्त है कि उस सबके चुनौतीपूर्ण अध्ययन में पुष्पपाल सिंह अपने पुरे आलोचकीय औजारों और पैनी भाषा-शैली के साथ प्रवृत्त होते हैं | उपन्यास के ढांचे, रूपाकार में भी इतने व्यापक प्रयोग इस काल-खंड के उपन्यास में हुए हैं जिन्होंने उपन्यास की धज ही पूरी तरह बदल दी है | उपन्यास की शैल्पिक संरचना पर हिंदी में ‘न’ के बराबर विचार हुआ है, प्रस्तुतु अध्ययन में विद्वान लेखक ने उपन्यास की शैल्पिक संरचना के परिवर्तनों का भी सोदाहरण विवेचन कर विषय के साथ पूर्ण न्याय किया है | लेखक ने उपन्यास के विपुल का अध्ययन कर उसके श्रेष्ठ के रेखांकन का प्रयास किया है किन्तु फिर भी अपने निष्कर्षों पर अड़े रहेने का आग्रह उनमें नहीं है, वे सर्वत्र एक बहस को आहूत करते हैं |उपन्यास-आलोचना के सम्मुख जो चुनोतियाँ हैं, उन पर भी प्रकाश डालते हुए एक विचारोत्तेजक बहस का अवसर दिया गया है | पुस्तक के दूसरे खंड-विशिष्ठ उपन्यास खंड में वर्षानुक्रम से अड़तीस विशिष्ट उपन्यासों का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है | इन उपन्यासों की समीक्षा-शैली में इतना वैविध्य है कि वह अपने ढंग से हिंदी आलोचना की नई समृद्धि प्रदान करता हुआ लेखकीय गौरव की अभिवृद्धि करता है | पुष्पपाल सिंह की यह कृति निश्चय ही हिंदी आलोचना को एक अत्यंत महत्तपूर्ण अवदान है |
9788183617888
891.433 P979 T / 110571
21vin Shati Ka Hindi Upanyas - Delhi Radhakrishna 2015
21वीं शती का हिंदी उपन्यास एक ही अध्येता द्वारा उपन्यास-साहित्य के समग्र का परिक्षण कर विशिष्ट कृति के मूल्यांकन की परंपरा का प्रायः अभाव है | एकाध प्रयत्न को छोड़कर उपन्यास-आलोचना में बड़ा शून्य है | इसी शून्य को भरने का प्रयास सुप्रसिद्ध वरिष्ठ आलोचक डॉ. पुष्पपाल सिंह प्रणीत इस ग्रन्थ में हुआ है जिसमें 21वीं शती के उपन्यास-साहित्य की समग्रता में प्रवेश कर, 2013 (के मध्य तक) के प्रकाशित उपन्यासों पर गंभीरता से विचार का सुचिंतित निष्कर्ष प्रतिपादित किए गये हैं | उपन्यासों के कथ्य की विराट चेतना पर विचार करते हुए दर्शाया गया है कि आज उपन्यास का क्षितिज कितना विस्तृत हो चुका है | भूमंडल की कदाचित कोई ही ऐसी समस्या होगी जिस पर हिंदी उपन्यास में विचार नहीं हुआ हो | भूमंडलीकृत आर्थिकता (इकॉनमी) तथा अमेरिकी संस्कृति के वर्चस्व ने न केवल भारत अपितु पूरी दुनिया में जो खलबली मचा राखी है, उस सबका सशक्त आकलन ‘21वी शती का हिंदी उपन्यास’ प्रस्तुत करता है | उपन्यास का चिंतन और विमर्श पक्ष इतना सशक्त है कि उस सबके चुनौतीपूर्ण अध्ययन में पुष्पपाल सिंह अपने पुरे आलोचकीय औजारों और पैनी भाषा-शैली के साथ प्रवृत्त होते हैं | उपन्यास के ढांचे, रूपाकार में भी इतने व्यापक प्रयोग इस काल-खंड के उपन्यास में हुए हैं जिन्होंने उपन्यास की धज ही पूरी तरह बदल दी है | उपन्यास की शैल्पिक संरचना पर हिंदी में ‘न’ के बराबर विचार हुआ है, प्रस्तुतु अध्ययन में विद्वान लेखक ने उपन्यास की शैल्पिक संरचना के परिवर्तनों का भी सोदाहरण विवेचन कर विषय के साथ पूर्ण न्याय किया है | लेखक ने उपन्यास के विपुल का अध्ययन कर उसके श्रेष्ठ के रेखांकन का प्रयास किया है किन्तु फिर भी अपने निष्कर्षों पर अड़े रहेने का आग्रह उनमें नहीं है, वे सर्वत्र एक बहस को आहूत करते हैं |उपन्यास-आलोचना के सम्मुख जो चुनोतियाँ हैं, उन पर भी प्रकाश डालते हुए एक विचारोत्तेजक बहस का अवसर दिया गया है | पुस्तक के दूसरे खंड-विशिष्ठ उपन्यास खंड में वर्षानुक्रम से अड़तीस विशिष्ट उपन्यासों का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है | इन उपन्यासों की समीक्षा-शैली में इतना वैविध्य है कि वह अपने ढंग से हिंदी आलोचना की नई समृद्धि प्रदान करता हुआ लेखकीय गौरव की अभिवृद्धि करता है | पुष्पपाल सिंह की यह कृति निश्चय ही हिंदी आलोचना को एक अत्यंत महत्तपूर्ण अवदान है |
9788183617888
891.433 P979 T / 110571