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Pratinidhi Kahaniyan

By: Material type: TextTextPublication details: Delhi Rajkamal Prakashan 2018Description: 135ISBN:
  • 9788126714483
DDC classification:
  • 891.43371 G996 P 110597
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Books Books Ubhayabharati 891.43371 G996 P (Browse shelf(Opens below)) Available 110597

प्रतिनिधि कहानियाँ : ज्ञानरंजन -- साठोत्तरी प्रगतिशील कथा-साहित्य में ज्ञानरंजन की कहानियों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस संग्रह में उनकी प्रायः सभी बहुचर्चित कहानियाँ शामिल हैं जो समकालीन सामाजिक जीवन की अनेकानेक विरूपताओं का खुलासा करती हैं। इस उद्देश्य तक पहुँचने के लिए ज्ञानरंजन ने अक्सर पारिवारिक कथा-फलक का चुनाव किया है, क्योंकि परिवार ही सामाजिक संबंधों की प्राथमिक इकाई है। इसके माध्यम से वे उन प्रभावों और विकृतियों को सामने लाते हैं, जो हमारे बूर्ज्वा संस्कारों की देन हैं। ये बूर्ज्वा संस्कार ही हैं कि प्रेम-जैसा मनोभाव भी हमारे समाज में या तो रहस्यमूलक बना हुआ है या भोगवाचक। ऐसी कहानियों में किशोर प्रेम-संबंधों से लेकर उनकी प्रौढ़ परिणति तक के चित्र उकेरते हुए ज्ञानरंजन अपने समय की प्रायः समूची दशा पर टिप्पणी करते हैं। मनुष्य के स्वातंत्रय पर थोपा गया नैतिक जड़वाद या उसे अराजक बना देनेवाला आधुनिकतावाद- मानव-समाज के लिए दोनों ही घातक और प्रतिगामी मूल्य हैं। वस्तुतः आर्थिक विडंबनाओं से घिरा मध्यवर्ग सामान्य जन से न जुड़कर जिन बुराइयों और भटकावों का शिकार है, ये कहानियाँ उसके विविध पहलुओं का अविस्मरणीय साक्ष्य पेश करती हैं।

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