Sangeet chintan / संगीत चिंतन
Material type:
- 978-93-5000-269-8
- 780.2 T3268 S 301705
किस-किस रागिनी में कौन-कौन से स्वर लगते हैं या नहीं लगते हैं यह तो अति प्राचीन काल से स्थिर कर दिया गया है, उसे लेकर अधिक श्रम की जरूरत नहीं, अब तो संगीतवेत्ता यदि इस बात का पता लगाने का प्रयास करें कि किस-किस रागिनी में कौन-कौन से भाव हैं तो अधिक अच्छा हो। हमारे देश में संगीत इतना शास्त्रगत, अनुष्ठानगत हो गया है कि स्वाभाविकता से दूर हो गया है। ऐसा समय भी आएगा जब हमारे संगीत के परिचय के लिए हमें यूरोप जाना पड़ेगा। हमारे मत से राग-रागिनी विश्वसृष्टि में नित्य हैं, इसीलिए हमारे शास्त्रीय गान ठीक जैसे मानव का गान नहीं, वह जैसे समस्त जगत का गान है। भैरव जैसे भोर के आकाश का प्रथम जागरण है, परज जैसे अवसन्न रात्रिशेष की निद्राविह्वलता है, कान्हड़ा जैसे घनान्धकार में अभिसारिका निशीथिनी की पथविस्मृति है।
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